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कांग्रेस का दामन छोड़ तृणमूल कांग्रेस के पाले में गए हैं ललितेश पति त्रिपाठी, बोलें कांग्रेस की राजनीतिक संस्कृति ही मेरा डीएनए है।

वाराणसी। कांग्रेस में पूर्वांचल की धुरी माने जाने वाले औरंगाबाद हॉउस से ललितेशपति त्रिपाठी ने कांग्रेस से इस्तीफा देने की घोषणा की थी तो चर्चाएं शुरू ही थी कि आखिर ललितेशपति और उनके पिता राजेशपति त्रिपाठी किसके साथ जाएंगे। इन सभी कयासों पर ललितेशपति त्रिपाठी और उनके पिता राजेशपति त्रिपाठी ने विराम लगा दिया।

दोनों पिता पुत्र ने सोमवार को एक सादे समारोह में तृणमूल कांग्रेस का हाथ थाम लिया। दोनों पिता-पुत्र को पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सदस्यता दिलाई। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी के पौत्र राजेशपति त्रिपाठी और प्रपौत्र ललितेशपति त्रिपाठी ने ममता बनर्जी का हाथ थाम लिया। पूर्वांचल के कद्दावर नेताओं में शुमार रखने वाले पूर्व विधायक ललितेशपति त्रिपाठी ने पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में तृणमूल कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली।

कांग्रेस से मोहभंग होने के बाद भी ललितेश त्रिपाठी ने इसी पार्टी की राजनीतिक संस्कृति को अपना डीएनए बताया। लेकिन इसके साथ ही कांग्रेस छोड़ने को लेकर अपनी टीस भी उजागर की। उनका कहना है कि मैं परंपरागत कांग्रेस संस्कृति का व्यक्ति हूं। पांच पीढ़ी पूर्व मेरे पूर्वज 1905 की बनारस कांग्रेस की स्वागत समिति के सदस्य थे। चार पीढ़ी पहले मेरे प्रति पितामह पं.कमलापति त्रिपाठी देश में कांग्रेस संस्कृति के एक प्रतीक थे। बाद की भी पीढ़ियों सहित मेरी पूरी विरासत गवाह है कि आधुनिक भारत बनाने वाली कांग्रेस की राजनीतिक संस्कृति ही मेरा डीएनए है, वही मेरी पहचान है और वही मेरा पता है।

कांग्रेस अपनी राजनीतिक विरासत से कटने लगी है%3A-
लेकिन दुर्भाग्य है कि कांग्रेस भी गांधी-नेहरू विरासत की अपनी राजनीतिक संस्कृति की जगह एक अतिवाद के सहारे दूसरे अतिवाद को काटने की कोशिश में लगी है। इससे वह अपनी ही राजनीतिक विरासत से कटने लगी है। परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस में परम्परागत कांग्रेसियों को किनारे रहने या दूर चले जाने के लिए बाध्य किया जाने लगा। ऐसे में मड़िहान, मिर्जापुर व बनारस के साथियों की सलाह पर बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी से भी हमारी मुलाकात हुई। हमें लगा कि जिस राजनीतिक विचारधारा की संस्कार से हम जुड़े हैं, बगैर उससे समझौता किए देश और समाज की सेवा की राजनीति ममता बनर्जी के नेतृत्व में संभव है। हालांकि यूपी में अभी तृणमूल कांग्रेस संगठन व जनाधार की नींव जमाने की चुनौती है। पर विश्वास है कि हम इस चुनौती पर खरा उतरेंगे। उन्होंने लाइव वीएनएस को अपनी भेजी गई विज्ञप्ति के माध्यम से ये सब कुछ कहा।

आज देश में दो तरह की अतिवादी राजनीति%3A-
अब ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी का दामन थाम चुके ललितेश का कहना है कि मेरे प्रति-पितामह पं.कमलापति त्रिपाठी मानते थे कि इतिहास ने कांग्रेस को भारत की सभ्यता-संस्कृति की नींव पर खड़ी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्र का संरक्षक बनाया है। उन्होंने 80 के दशक में ही देश में उभरते दक्षिणपंथी फासीवाद की अतिवादी राजनीति के खतरों से कांग्रेस नेतृत्व को आगाह किया था पर उनकी नहीं सुनी गई। इसके बाद भी हम कांग्रेस में लगातार काम करते रहे, लेकिन उनकी जो आशंका थी, वह खतरा बढ़ता गया। आज देश में दो तरह की अतिवादी राजनीति है। एक ओर धर्म की राजनीति करने वाले हैं और दूसरी ओर धर्म को गलत रोशनी में पेश करने वाली राजनीति है।

मैं कांग्रेस संस्कृति से कट कर नहीं रह सकता%3A-
ये दोनों ही राजनीतिक ताकतें समय समय पर मिल कर गैरकांग्रेसवाद जीती रहीं। इससे कांग्रेस कमजोर होती रही। इस तरह की परिस्थितियों में मैं पार्टी और संगठन में कोई भी सार्थक योगदान दे पाने में खुद को असमर्थ महसूस कर रहा था। लिहाजा मैंने पार्टी से त्यागपत्र देने का फैसला लिया। इस दौरान उत्तर प्रदेश के कुछ प्रमुख दलों ने मुझे अपने साथ जोड़ने के दबाव बनाये, लेकिन मेरा मानना है कि मैं कांग्रेस संस्कृति से कट कर नहीं रह सकता। मेरे लिए राजनीति पद पाने का खेल नहीं।

कारण साफ है की आधुनिक भारत बनाने वाले उन सिद्धांतों एवं विचारधारा का हथियार हमारे हाथ में रहेगा, जिससे मैं जुड़ा रहा हूं। और बड़ी बात कि ईमानदार व विचारों की प्रतिबद्धता के साथ संघर्षशील राजनीतिक नेतृत्व की मिसाल ममता बनर्जी का नेतृत्व हमें प्राप्त होगा, जिसे भारत आशा की किरण के रूप में देख रहा है। मुझे भरोसा है कि देश के महान लोकतंत्र के हित में सकारात्मक राजनीतिक भूमिका निभाने में हम कामयाब होंगे।

Posted On:Tuesday, October 26, 2021


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